अलविदा ए माहे रमजान
🌙 अलविदा ए माह-ए-रमज़ान 🌙
अलविदा ए माह-ए-रमज़ान
1. चाँद की मुस्कान अब धुंधलाई सी लगे,
रूह का सफर अधूरा सा लगे।
2. सेहरी की ख़ामोशी में अब सन्नाटा है गहरा,
इफ्तार की थाली में न रहा वो ज़ायका भरा।
3. तरावीह की रौनकें सिमट गईं मस्जिदों में,
दुआओं के फूल खिले थे जो अब बिखर गए हैं।
4. माथे के पसीने से लिखी थी इबादत की कहानी,
अल्लाह की रहमत का सिलसिला है ये निशानी।
5. रोज़े की मिठास ने दिल को किया था निर्मल,
अब लगता है आँसुओं का सैलाब है अश्कों में छलक।
6. कुरान की आयतों ने सजाई थी रातें जो सवेरी,
अब उनकी गूँज सुनाई देती है बस यादों के शहरी।
7. ज़कात के पैग़ाम ने बाँटा था प्यार का दस्तूर,
अब खाली हाथ लौट रही है मोहब्बत की मंज़ूर।
8. लैलतुल क़द्र की रात का नूर था जो दिल में समाया,
वो नूर अब भी है, बस रौशनी का सफ़र थमा सा लगे।
9. मुस्कुराता हुआ चाँद अब विदा लेता जाता है,
दुआओं का गुलदस्ता लिए, मगर दिल उदास सा है।
10. सज्दों के निशान अब मिटेंगे मिट्टी में कब,
पर रूह की पुकार यूँ ही गूँजेगी अरश पर शायद।
11. माह-ए-रमज़ान की बरकतें लेकर जा रहा हूँ,
मगर तेरी रहमत के दरवाज़े पे दस्तक देता हूँ।
12. तकवा का पैग़ाम दिल में संजोकर चल पड़े,
ये महीना गया, पर नेकियों का सिलसिला न रुके।
13. खुदा से माँगा था जो मगफ़िरत का सहरा,
वो दुआ अब भी है मेरे आँसुओं में तैरा।
14. अलविदा कहते हुए भी दिल कहता है "इल्तिजा",
फिर से लौट आए ये पाक महीना, ऐ मेरे खुदा!
15. रोज़े की भूख ने सिखाया था संतोष का पाठ,
अब भीख माँगती है वो सबक ये दिल की बस्ती।
16. इफ्तार की खुशबू से महक उठा था जो आँगन,
अब उसकी याद में बैठा हूँ तन्हा मैं इस चौखट पर।
17. नमाज़ की सजदे में झुकी थी जो क़िस्मत मेरी,
अब लगता है वो किरणें छूट गईं आसमाँ से।
18. माह-ए-रमज़ान की विदाई पे गम नहीं, शुक्र है,
इसने तो दिल को सिखा दिया इबादत का सलीका।
19. जो आँसू बहाए थे गुनाहों की माफ़ी के लिए,
वो अब भी नम हैं मेरी पलकों पे ओस की तरह।
20. अलविदा! ऐ महीने-ए-बरकत, तेरा इंतज़ार रहेगा,
अगले साल फिर तेरे आगोश में दिल समाएगा।
~ शुभकामनाएं एवं दुआओं सहित ~
© 2025 ईद उल-फित्र की शुभकामनाएं